मिल्क फीवर को सामान्य भाषा में दूध बुखार के नाम से भी जाना जाता है, जो पशु के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर देता है। जब पशु के रक्त में कैल्शियम का स्तर कम हो जाता है, तो उससे होने वाली स्वास्थ्य समस्या को ही मिल्क फीवर के नाम से जाना जाता है। यही वजह है कि मिल्क फीवर ज्यादातर पशुों को ब्यांत के एक या दो दिन बाद हो जाता है।
पशु को मिल्क फीवर होने के लक्षण
मिल्क फीवर से होने वाले लक्षण पशु के स्वास्थ्य और उसे पहले से हुए अन्य रोगों के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। हालांकि, पशु का शारीरिक रूप से कमजोर होना और बुखार आदि मिल्क फीवर के मुख्य लक्षणों में शामिल है।
चरण - 1
यह रोग की शुरुआती अवस्था है, जिसके लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं -
पशु को भूख न लगना
शारीरिक कमजोरी होना
चरण – 2
ब्यांत के समय अचानक से कैल्शियम सप्लीमेंट देना बंद न करें, ऐसा करने से पशु के शरीर में अचानक हुए बदलाव कैल्शियम की कमी का कारण बन सकते हैं।
ब्यांत से पहले कैल्शियम को बहुत कम या अधिक मात्रा में न देकर एक उचित मात्रा में देते रहें। इसके अलावा गाय को कब और कितनी मात्रा में कैल्शियम की खुराक देनी है और कितने दिन तक देनी है इस बारे में पशुचिकित्सक से बात कर लेनी चाहिए।
पशु को एक अच्छा व पौष्टिक आहार दें। सड़ा हुआ या बासी घास आदि न खिलाएं क्योंकि इससे पशु की पाचन प्रणाली प्रभावित हो सकती है।
मिल्क फीवर का इलाज ( Allopathic Treatment )
मिल्क फीवर के इलाज में मुख्यत: पशु को कैल्शियम सप्लीमेंट्स के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। ये इंजेक्शन नसों और मांसपेशियों के लिए अलग-अलग प्रकार से उपलब्ध होते हैं। कुछ मामलो में इंजेक्शन लगाने से पहले एक पशु चिकित्सक पशु को गुड़ व नींबू के रस को कुछ पानी में मिलाकर देते हैं, जिससे भी उनके कैलिशयम स्तर में कुछ सुधार किया जा सकता है।
मिल्क फीवर के इलाज के अलावा पशु को हो रहे लक्षणों के अनुसार भी कुछ दवाएं दी जा सकती हैं।
यदि गाय को बुखार या कब्ज की शिकायत है, तो पशु चिकित्सक मिल्क फीवर के अलावा कुछ अन्य दवाएं भी दी जा सकती हैं।